Wednesday 26 October 2011

भगवन महावीर

भगवान महावीर श्वेताम्बी नगरी की ओर विहार कर रहे थे !मार्गस्थ  लोगों ने कहा –भगवन आप उधर विहार न करें ,उधर भयंकर सर्प चंडकौशिक रहता है आने जाने वाले किसी को नहीं छोड़ता !भगवान कहाँ डरने वाले थे –चल पड़े उधर ही ! चंडकौशिक ने देखा –कोई है जो इधर आ रहा है !चंडकौशिक ने पैर के अंगूठे पर काटा –भगवन तो वज्र वृषभनाराच  संहनन शारीर के धारी थे !उन्हें कहाँ फर्क पड़ने वालाथा!चंडकौशिक हैरान परेशान !ऊपर पूरे शरीर पर डसने लगा !कुछ नहीं !आश्चर्यचकित था ! भगवन के संपर्क में आकर उसे जाति स्मरण हो गया ! सब स्मरण हो आया कि कैसे गुस्सा करने पर उन्ही भावों में मृत्यु हो गई तो मुझे यह सर्प का शरीर धारण करना पड़ा ! आँखों से आँसू बहने लगे !भगवन ने उसे समता धारण का उपदेश दिया ! उसने डसना छोड़ दिया ,फुफकारना भी छोड़ दिया ! अनशन ले कर साम्य भाव से स्थिर हो गया ! –लोगों को जब पता चला तो फल फुल मिष्टान्न ले कर आये और उसकी पूजा करने लगे !चींटियाँ आदि एकत्रित हो गयी वहां !उसके शरीर को अन्य जीव जानवर भक्षण करने लगे ! लेकिन अब समता का प्रवेश हो चूका था उसके जीवन में ! चुपचाप सब सहने लगा ! समता धारण करते हुए ही उसके प्राण निकल गए !मरकर स्वर्गों में देव हुआ |
शिक्षा ये है कि जिस जीव ने मनुष्य पर्याय में रहकर क्रोध किया और उन्ही भावों में मृत्यु को प्राप्त हुआ वह मरकर त्रियंच हुआ और वही  जीव समता को धारण कर प्राण छोड़ कर स्वर्गों में देव हुआ !
  

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